Wednesday 4 May 2011

दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है

दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है 
हो न हो अपना मिलन दिल में अधूरी आस है.
याद की डोरी सहारे आ गए तुम  शुक्रिया
लौट न जाना ह्रदय से बस यही अभिलाष है.

खोजने पर इस जहा में कोई तो मिल जाएगा
है नही मुमकिन हमें वो आप जैसा चाहेगा
बस गयी मेरे जेहन  तुमसे मिलन की प्यास है
दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है

चाँद पूनम का बिखेरे है जवानी रात में
आ भी जाओ भीग ले हम प्यार की बरसात में 
बिन तेरे मानो लगे ये ज़िंदगी बनवास है 
दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है 

ऐ परिंदों पंख दो मै जाऊँगा प्रीतम शहर 
या बता दो हाल उनका जाओ तुम उनकी डगर 
याद करते वो मुझे ऐसा मेरा विश्वास है 
दूर हूँ लेकिन हमारा मन तुम्हारे पास है 

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना आप की
    याद की डोरी सहारे आ गए तुम शुक्रिया
    लौट न जाना ह्रदय से बस यही अभिलाष है.
    हर प्रेयसी की यही अभिलाषा होती है प्रभु सब को विरह से मुक्ति दें

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  2. बेहद् गहन अभिव्यक्ति.. अति खूबसूरत रचना ..आभार

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